सोच का फर्क (Soch ka Fark)
एक गरीब आदमी बहुत मेहनत कर एक एक रुपया जोड़ कर मकान बनवाता है। 20 सालो से वो अपना खुद का घर बनाने के लिए एक एक रुपया बचाता है। क्युकी वह अपने परिवार को अपने उस छोटे से झोपड़े से निकाल कर एक पक्के मकान में लाना चाहता है ताकि उसका परिवार सुखी रह सके। 20 सालो की मेहनत के बाद आख़िरकार उसका मकान तैयार हो जाता है।
अब उसने पंडित से पूछ कर गृह प्रवेश के लिए शुभ दिन निश्चित करता है , लेकिन गृह प्रवेश के 2 दिन पहले ही भूकंप आता है और उसका मकान पूरी तरह नष्ट हो जाता है।
जब उस आदमी को अपने मकान के गिरने के बारे में पता चलता है तो वो बाजार जाकर मिठाई खरीद लता है। मिठाई लेकर वह घटना स्थल पर पहुँचता है जहाँ पर काफी लोग इकठे होकर उसके मकान गिरने पर अफ़सोस जाहिर कर रहे थे।
उसके मकान के बाहर लोग खड़े थे और उस मकान के गिरने पर उस आदमी के बारे में सोच कर बाते बोल रहे थे कि वह आदमी जिसने इतने सालो से मेहनत करके मकान बनवाया वो गिर गया। वह आदमी वहाँ पहुँचता है और झोले से मिठाई निकाल कर सबको बाटने लग जाता है। यह देख कर सभी लोग हैरान हो जाते है। उसे मिठाई बाटते देख उसके दोस्त ने पहुंचा कि तुम पागल हो गए हो क्या तुम्हारा मकान गिर गया और तुम खुश होकर मिठाई बाँट रहे हो।
वह आदमी मुस्कुरा कर कहता है तुम इस घटना का सिर्फ नकारात्मक हिस्सा देख रहे हो इसलिए इसका सकारात्मक पक्ष तुम्हे दिखाई नहीं दे रहा है। तो वह आदमी बोलता है कि ये तो अच्छा ही हुआ कि ये आज गिर गया अगर 2 दिन बाद गिरता तो मेरा पूरा परिवार मारा जाता। तब कितना बड़ा नुकसान होता।
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